Pollution: वायु प्रदूषण बना गंभीर खतरा, बच्चों के दिमागी विकास पर भी असर

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दुनियाभर में बढ़ते वायु प्रदूषण ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों (पार्टिकुलेट मैटर – पीएम2.5 और पीएम10) की मात्रा लगातार बढ़ रही है, जिससे असमय मृत्यु, स्ट्रोक, फेफड़ों के रोग और हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। स्विट्जरलैंड के बेसल विश्वविद्यालय की रिपोर्ट बताती है कि हर साल लगभग 60 लाख लोगों की असमय मृत्यु वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण होती है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, वायु प्रदूषण बच्चों के मस्तिष्क विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। शुरुआती उम्र में प्रदूषित हवा में सांस लेने से मस्तिष्क की फंक्शनल कनेक्टिविटी बाधित होती है, जिससे उनकी सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो सकती है। ‘एनवायरनमेंट इंटरनेशनल’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि 0 से 12 वर्ष की उम्र तक उच्च प्रदूषण के संपर्क में आने से भविष्य में डिमेंशिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

भारत की स्थिति इस मामले में बेहद चिंताजनक है। बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में पाया गया कि नीदरलैंड जैसे देशों की तुलना में भारत में बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमताएं कमजोर पाई गईं। IQ Air की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया का पांचवां सबसे प्रदूषित देश है, जहां पीएम2.5 का औसत स्तर WHO के मानकों से 10 गुना अधिक है। भारत के 74 शहर दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं।

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